अब घुटन होने लगी है
अब घुटन होने लगी है, उन विचारों के बीच रह कर, जिनसे न जाने क्यों कितना भी बनाओ तालमेल, बार - बार बेमेल हो जाता है। सोच और सपनों की दुनियां, हक़ीक़त की दुनिया से कितनी अलग होती है। यहाँ सब,सबसे जुड़े तो है, पर भीतर से पूरी तरह टूटे हुये है। बचपन में पढ़ा था अकेला लाठी हमेशा कमज़ोर होता है, पर आज तो अकेला लाठी सा ही होने लगे हैं लोग। गांव में आज भी साथ-साथ, कम से कम ताश खेलते नज़र तो आते है लोग। पर वही जब गांव का शहर आता है, तो उसे शहर की नज़र लग जाते देखे हैं हमनें लोग। आज जितना भी कहू सब कम सा लगने लगा है । अब तो हर आदमी बनावटी सा दिखने लगा है।। भइया! मुस्कराहटो में अब वो कमाल के समझदार दिखने लगे है। क्योकि जरूरत के हिसाब से अब वो हँसने लगे है।