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हमी में है छुपा बैठा, हमारे पास बिल्कुल है : स्वामी राम शंकर

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"निर्वाण" : स्वामी राम शंकर की कविता। सुख की चाह में, दर दर भटकते है, न जाने कितने दिन, महीने हम खर्च करते हैं। लगा देते है अपना सब,बस सुख की ख्वाहिश में, नही मिलता जहाँ से, चाहते हैं , तृप्ति जीवन में। नही बाहर है, जो हम ढूंढते फिरते भटकते है, हमी में है छुपा बैठा, हमारे पास बिल्कुल है । नज़र को फेर लो, बाहर से अन्दर देखते जाओ, जो बाहर है, उसे बस तुम सदा अब छोड़ते जाओ। जो केवल वस्तु अनुभवगम्य और अद्वै अगोचर है। वही हम है, वहीं सुख है। वही निर्वाण मुक्ति है। :- स्वामी राम शंकर।

उन रिश्तों का सम्बन्धो का कुछ अर्थ नही रह जता हैं : स्वामी राम शंकर

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पता नही हैं तुमको हम दूर बहुत हो जायेंगेl जब याद हमारी आयेंगी हम हाथ नही फिर आयेंगेll उन रिश्तों का सम्बन्धो का कुछ अर्थ नही रह जता हैंl जो केवल कोरी तारीफ़ करें कर सकते जों वो भी ना कियेll अहसान जताने को आतुर हर हाल मे मौक़ा खोजते वोl मर जायेंगे ना पाओगे कमज़ोर नही कर पाओगेll ख़ुश रहता हूँ ख़ुश रह लूँगा ख़ुद को मैं साबित कर लूँगाl मैं कौन कहाँ से आया हूँ मैं सीखा और सिखाया हूँ ll ख़ैरात नही चाहा तुमसे सम्मान नही बेचा तुमकोl मैं ज़िन्दा हूँ अभी मरा नही स्वाभिमान हमारा डिगा नहीll ..... डिजिटल बाबा स्वामी राम शंकर "शान्त "की रचना 

मेरीकविता : माँ और बच्चा

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कथनीय है,बंदनीय है। क्योकि तू मेरी जननी है।। मेरी सूरत में तेरी सिरत है। जो कुछ भी मैं हूँ वो तू है।। हर तरफ तू नज़र आती है माँ। सोने से पहले और बाद याद आती है माँ।। मेरे लिये तू ही देवी है, तू ही शक्ति है। तू ही मेरी प्राण है, तुझे कोई कष्ट हो तो जीना धिक्कार है।। दुःख केवल इस बात का है मुझे और मेरी पीढ़ी को जो माँ मिली अब वो माँ आने वाले समय में किताबो और कहानियों के पन्नो में ही नज़र आयेगी। जानती हो इस काल को देख कर लगने लगा है कि माँ को बच्चा तो चाहिये और बच्चे का प्यार भी पर जरूरतों ने माँ को कार्यालय की ओर बच्चे को playschool की ओर भेज दिया। अब तो न माँ पूरी रह गयी, न बच्चा पूरा रहा । माँ थकी हारी जब लौटती है तब काम में उलझ जाती और बाकि समय तो बच्चे का होमवर्क सुलझाती है। काल क्रम में दोनों बहुत बड़े हो गये, घर में गाड़ी घोड़े हो गये पर जिस वक्त जो जरूरत थी उससे दोनों अधूरे रह गये। यही वो मूल वजह है जिसके कारण दोनों बूढ़े हो गये।।                                                      ....... रामशंकर

अब घुटन होने लगी है

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अब घुटन होने लगी है, उन विचारों के बीच रह कर, जिनसे न जाने क्यों कितना भी बनाओ तालमेल, बार - बार बेमेल हो जाता है। सोच और सपनों की दुनियां, हक़ीक़त की दुनिया से कितनी अलग होती है। यहाँ सब,सबसे जुड़े तो है, पर भीतर से पूरी तरह टूटे हुये है। बचपन में पढ़ा था अकेला लाठी हमेशा कमज़ोर होता है, पर आज तो अकेला लाठी सा ही होने लगे हैं लोग। गांव में आज भी साथ-साथ, कम से कम ताश खेलते नज़र तो आते है लोग।  पर वही जब गांव का शहर आता है, तो उसे शहर की नज़र लग जाते देखे हैं हमनें लोग। आज जितना भी कहू सब कम सा लगने लगा है । अब तो हर आदमी बनावटी सा दिखने लगा है।। भइया! मुस्कराहटो में अब वो कमाल के समझदार दिखने लगे है।  क्योकि जरूरत के हिसाब से अब वो हँसने लगे है।

सम्वेदना मुझमे भी है

खुली हवा में हम भी, श्वास लेना चाहते है। परिंदो सा पंख उगा के, हम भी उड़ना चाहते है।। मर्यादित रह कर जिंदगी के, मायने समझना चाहते है। तुम्हारे लिये नही! हम अपने लिये जीना चाहते है।। सम्वेदना मुझमे भी है, क्यों कहते हो कि मैं तो संन्यासी हूँ। मेरे जीवन मेरे संन्यास मेरे व्यवहार से जब तुम आहत होना तो कह देना छोड़ देंगे,पर अपने विचार पुराने विचार हम पर थोपो मत।                                     #रामशंकर
                                                    कौन अपना कौन पराया ।                                                                                                                                         ये बात ! अभी तक नहीं समझ पाया ।।                                                                                                                                                                                                                             परायो में कोई अपना , अपनों में पराया अक्सर                                                     नज़र आया ।।                                                                                                                                                                                                                             कुछ भी नहीं है पक्का, जीवन के सफ़र में यारा ।                                                     कौन कब देगा धोखा , ये कोई नहीं परख पाया ।।                                                                
हम चले है सफर में अकेले। मुझको राहो में कोई ना रोके। । ग़र  जो चलना तुम्हे भी तो स्वागत है। वर्ना तेरे साथ की नहीं मुझको चाहत है। ।