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मेरीकविता : माँ और बच्चा

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कथनीय है,बंदनीय है। क्योकि तू मेरी जननी है।। मेरी सूरत में तेरी सिरत है। जो कुछ भी मैं हूँ वो तू है।। हर तरफ तू नज़र आती है माँ। सोने से पहले और बाद याद आती है माँ।। मेरे लिये तू ही देवी है, तू ही शक्ति है। तू ही मेरी प्राण है, तुझे कोई कष्ट हो तो जीना धिक्कार है।। दुःख केवल इस बात का है मुझे और मेरी पीढ़ी को जो माँ मिली अब वो माँ आने वाले समय में किताबो और कहानियों के पन्नो में ही नज़र आयेगी। जानती हो इस काल को देख कर लगने लगा है कि माँ को बच्चा तो चाहिये और बच्चे का प्यार भी पर जरूरतों ने माँ को कार्यालय की ओर बच्चे को playschool की ओर भेज दिया। अब तो न माँ पूरी रह गयी, न बच्चा पूरा रहा । माँ थकी हारी जब लौटती है तब काम में उलझ जाती और बाकि समय तो बच्चे का होमवर्क सुलझाती है। काल क्रम में दोनों बहुत बड़े हो गये, घर में गाड़ी घोड़े हो गये पर जिस वक्त जो जरूरत थी उससे दोनों अधूरे रह गये। यही वो मूल वजह है जिसके कारण दोनों बूढ़े हो गये।।                                                      ....... रामशंकर