सम्वेदना मुझमे भी है

खुली हवा में हम भी,
श्वास लेना चाहते है।
परिंदो सा पंख उगा के,
हम भी उड़ना चाहते है।।
मर्यादित रह कर जिंदगी के,
मायने समझना चाहते है।
तुम्हारे लिये नही!
हम अपने लिये जीना चाहते है।।
सम्वेदना मुझमे भी है,
क्यों कहते हो कि मैं तो संन्यासी हूँ।
मेरे जीवन मेरे संन्यास मेरे व्यवहार से
जब तुम आहत होना तो कह देना छोड़ देंगे,पर अपने विचार पुराने विचार हम पर थोपो मत।
                                    #रामशंकर

Comments

  1. अति सुन्दर कविता।--------
    सम्वेदना मुझमे भी है
    स्वामी #रामशंकर जी आपकी कविता का पाठ किया वाकई काफी मार्मिक वर्णन किया है।

    आपके कलम की ऊर्जा यूँ ही मिलती रहे।

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